१३ - आख़िर में सब शुन्य है।
पहले ही मैं आप से मेरे गलितियों के लिए शमा माँगता हूँ। मैं हिन्दी भाषा मैं बहुत कमज़ोर हूँ। शुन्य - आख़िर इसब्रह्माण्ड मैं सब कूच अंत मे शुन्य ही है। ज़िंदगी मृत्यु होने पूरा एक चक्कर खतम करता है। हम ने जो भी पायाया खोया सब कूच मृत्यु के बाद कूच मायने नही करता। कभी कभी, लगता है की हम व्यर्थ मे ही जीते है। कूचमायनों मे देखा गया तो हमारे यहा होने का कोई मतलब नही है, सब जैसे चीटी जीते है वैसे ही हम भी जीते हैं। बसज़िंदगी का चक्र जन्म पर शुरू होकर मृत्यु मे पूरा होता है। शून्यता से शुरू और वहां पुर ही अंत होता है।
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